- चारधाम में 50 लाख से अधिक ने किये दर्शन
- विदेशी पर्यटकों ने नैनीताल से फैरा मुंह
- ट्रैफिक जाम, सीमित पार्किंग सुविधाएँ और भीड़भाड़ ने ड़ाली रूकावट
मौहम्मद शाहनज़र
देहरादून। उत्तराखंड की धरती इस वर्ष पर्यटन के दो विपरीत पहलूओं की गवाह बनी है। एक ओर जहां चारधाम यात्रा ने श्रद्धालुओं की रिकॉर्ड भागीदारी से इतिहास रच दिया, वहीं दूसरी ओर नैनीताल जैसे प्रमुख पर्यटन स्थल विदेशी सैलानियों की अनुपस्थिति से वीरान नज़र आ रहे हैं। उत्तराखंड सरकार के चारधाम यात्रा प्रबंधन एवं नियंत्रण संगठन की और से जारी ताज़ा आँकड़ों के अनुसार, 2025 की चारधाम यात्रा ऐतिहासिक रही। अब तक कुल 50,23,608 तीर्थयात्री चारों धाम, यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ के दर्शन कर चुके हैं।
31 अक्टूबर 2025 तक के आँकड़े
- यमुनोत्री धाम 6,44,637
- गंगोत्री धाम 7,58,249
- केदारनाथ धाम 17,68,795
- बदरीनाथ धाम 15,77,486
- हेमकुंड साहिब 2,74,447
अक्टूबर के मध्य तक प्रतिदिन औसतन 20 से 25 हजार श्रद्धालु चारधाम पहुँच रहे थे। केदारनाथ और बदरीनाथ धाम ने इस बार यात्रियों की संख्या के नए कीर्तिमान बनाए। ऋषिकेश स्थित चारधाम यात्रा प्रबंधन कार्यालय के अनुसार, इस वर्ष मौसम सामान्य रहा, जिससे यात्रा सुचारू रूप से संचालित हुई।
पर्यटन विभाग, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और परिवहन विभाग के समन्वित प्रयासों से यात्रा अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित और व्यवस्थित रही। धार्मिक दृष्टि से समृद्ध इस यात्रा ने राज्य की अर्थव्यवस्था और होटल उद्योग को भी नई ऊँचाइयाँ दीं, जिससे स्थानीय व्यापार में उत्साह का संचार हुआ।
सरोवर नगरी नैनीतालः विदेशी पर्यटकों से सूनी हुई वादियाँ
इसी दौरान राज्य का दूसरा चेहरा ‘नैनीताल‘ एक अलग ही कहानी कहता है। कभी विदेशी सैलानियों का “पहला प्यार” कही जाने वाली सरोवर नगरी नैनीताल अब सन्नाटे में डूबी है। मल्लीताल और तल्लीताल के बाजार, जहां कभी विदेशी पर्यटकों की चहल-पहल होती थी, अब उनकी रौनक को तरस रहे हैं।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में विदेशी मेहमानों की संख्या में भारी गिरावट आई है। सीजन के दौरान जहां कभी हर होटल विदेशी बुकिंग से भरा रहता था, वहीं अब यह संख्या लगभग शून्य हो चुकी है। पर्यटन विशेषज्ञों के अनुसार, बढ़ता ट्रैफिक जाम, सीमित पार्किंग सुविधाएँ और भीड़भाड़ ने विदेशी पर्यटकों को असुविधा में डाल दिया है। वे अब हिमाचल, लद्दाख और दक्षिण भारत जैसे वैकल्पिक स्थलों की ओर रुख कर रहे हैं।
इतिहासकार प्रो. अजय रावत बताते हैं कि नैनीताल का पर्यटन 1841 में शुरू हुआ था और 20वीं सदी के अंत तक यह एक प्रमुख हेल्थ रिसॉर्ट बन चुका था। उन्होंने कहा “इतना ऐतिहासिक होने के बावजूद यहां की इमारतों, चर्चों और कब्रिस्तानों का संरक्षण नहीं किया गया, जिससे अंतरराष्ट्रीय पर्यटन पर सीधा असर पड़ा है।”
होटल एसोसिएशन अध्यक्ष दिग्विजय सिंह बिष्ट ने भी चिंता जताई, “विदेशी पर्यटकों से नैनीताल की अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा मिलती थी, मगर अब खराब सड़कों, महंगाई और कठोर नियमों ने उन्हें दूर कर दिया है।”
पिछले 10 वर्षों के नैनीताल पर्यटन आँकड़े
वर्ष घरेलू पर्यटक विदेशी पर्यटक कुल पर्यटक
2015 808,903 6,902 815,805
2016 831,745 7,315 839,060
2017 888,470 8,110 896,580
2018 945,120 9,341 954,461
2019 978,560 9,105 987,665
2020 512,005 2,100 514,105
2021 780,110 633 780,743
2022 905,400 7,500 912,900
2023 980,112 8,915 989,027
2024 1,014,602 9,537 1,024,139
इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि जहाँ घरेलू पर्यटक संख्या में स्थिर वृद्धि हो रही है, वहीं विदेशी पर्यटकों की हिस्सेदारी लगातार घट रही है, जो राज्य की पर्यटन नीति के लिए चिंता का विषय है।
आस्था बनाम आकर्षणः संतुलन की ज़रूरत
उत्तराखंड का यह दोहरा परिदृश्य बताता है कि जहाँ धार्मिक पर्यटन तेजी से फल-फूल रहा है, वहीं अंतरराष्ट्रीय पर्यटन को नए सिरे से दिशा देने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को “सस्टेनेबल टूरिज़्म मॉडल” अपनाकर पर्यावरण, बुनियादी ढांचे और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण पर समान ध्यान देना चाहिए। चारधाम यात्रा की सफलता जहाँ राज्य की “आस्था शक्ति” का प्रतीक है, वहीं नैनीताल की गिरती सैलानी रफ्तार इस बात की चेतावनी है कि अगर योजनाबद्ध हस्तक्षेप न हुआ तो उत्तराखंड का संतुलित पर्यटन ढाँचा असंतुलित हो सकता है।




