उत्तराखंड बजट सत्र 2025 : घमासान, घोटाले और भू-कानून की गूंज

Echo of scam and land law in Uttarakhand budget session 2025

देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा का बजट सत्र 2025 कई महत्वपूर्ण घटनाओं और विवादों से भरपूर रहा। सत्र के दौरान, सरकार ने 1,01,175.33 करोड़ रुपये का बजट पेश किया, जो राज्य के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा बजट है। इस बजट में शिक्षा, खेल, युवा कल्याण, ग्रामीण रोजगार, और अवस्थापना विकास जैसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया।

सत्र में भू-कानून संशोधन विधेयक समेत कुल 13 विधेयक पारित किए गए। नए भू-कानून के तहत, बाहरी राज्यों के लोग अब उधम सिंह नगर और हरिद्वार को छोड़कर बाकी 11 जिलों में कृषि और बागवानी की जमीन नहीं खरीद सकते हैं। इस कदम का उद्देश्य राज्य की भूमि को बाहरी हस्तक्षेप से बचाना है।

हालांकि, सत्र के दौरान कई विवाद भी उभरे। संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा सदन में दिए गए एक बयान ने पहाड़ और मैदान के बीच तनाव को बढ़ा दिया, जिससे सदन के भीतर और बाहर विरोध प्रदर्शन हुए। मंत्री को अंततः अपने बयान के लिए माफी मांगनी पड़ी। इसके अलावा, विपक्ष ने भ्रष्टाचार, मूल निवास, स्मार्ट मीटर, कानून व्यवस्था, और स्वास्थ्य-शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश की।

कांग्रेस ने सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग करते हुए सरकार पर दबाव डाला। सत्र के दौरान हुए विवादों और जन आक्रोश के कारण, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराखंड दौरा स्थगित कर दिया गया। हालांकि, आधिकारिक कारण मौसम संबंधी बताया गया, लेकिन राजनीतिक माहौल भी एक प्रमुख कारण माना जा रहा है। कुल मिलाकर, उत्तराखंड विधानसभा का बजट सत्र 2025 महत्वपूर्ण विधायी कार्यों और राजनीतिक घटनाओं का साक्षी बना, जिसने राज्य की राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला।

उत्तराखण्ड विधानसभा का बजट सत्र 25 फरवरी, 2025 से आरंभ हुआ। राज्यपाल का अभिभाषण राज्य के विकास, कल्याण और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करने वाला था। वित्त मंत्री ने बजट में प्रदेश की बढ़ती आर्थिक स्थिति, बुनियादी ढांचे में सुधार और स्वास्थ्य, शिक्षा, और रोजगार के लिए किए गए आवंटन पर जोर दिया।

राज्य सरकार का दावा था कि राज्य की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है और आगे भी इसे सशक्त बनाने की दिशा में कदम उठाए जाएंगे। हालांकि, विपक्ष ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। विपक्ष ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार केवल आंकड़ों के खेल में माहिर है, जबकि जमीनी स्तर पर विकास की स्थिति दयनीय है।

उत्तराखण्ड के आम बजट में सौगात के साथ कई प्रकार की चुनौतियां भी शामिल है। ‘नमो’ आधारित बजट (नवाचार, आत्मनिर्भर, महान विरासत व ओजस्वी) के तहत प्रदेश में पहली बार 1,01175.33 करोड़ का बजट पेश किया गया है। बजट में कृषि, उद्योग, ऊर्जा, अवसंरचना, संयोजकता, पर्यटन व आयुष पर ध्यान केंद्रित किया गया है। औद्योगिक निवेश बढ़़ाने, पर्यटन और कृषि क्षेत्र में सुधार करने की प्राधमिकता दिखाई गई हैं। इस सबके बावजूद राज्य सरकार के लिये बढ़ते कर्ज को कम करने और राजकोषीय घाटे को नियंत्रण करना बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।

प्रदेश पर बढ़ते कर्ज की बात की जाए, तो अपने स्थापना के दिनों से ही कर्ज में डूबे उत्तराखंड पर फिलहाल 80 हजार करोड़ का कर्ज है। उत्तराखंड वित्त विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक, राज्य गठन के समय उत्तराखंड पर 4,500 करोड़ का कर्ज था, जो मार्च 2024 तक बढते-बढ़ते 80 हजार करोड़ हो चुका है।

बजट को सरलीकरण, समाधान व निस्तारीकरण के मार्ग पर अग्रसरित बताया जा रहा है। धामी सरकार का दावा है कि यह बजट प्रदेश की आर्थिक दिशा और नीतियों का प्रमाण है। उत्तराखंड अनेक कार्यों का साक्षी रहा है। हम आत्मनिर्भर उत्तराखंड बनाने के लिए हम प्रयत्नशील हैं। वहीं, उत्तराखण्ड के इस बजट में कई सकारात्मक पहलुओं के बावजूद कई चुनौतियाँ भी शामिल हैं। सबसे बड़ी चुनौती राज्य के बढ़ते कर्ज और राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखना है।

सरकार को अपनी आय बढ़ाने के लिए नए स्रोतों की तलाश करनी होगी, औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने, पर्यटन और कृषि के क्षेत्र में और अधिक सुधार करने की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। इसके अलावा, सरकारी खर्चों को कुशलता से प्रबंधित करना भी महत्वपूर्ण होगा, ताकि राज्य के विकास को सुनिश्चित किया जा सके। अगर इन चुनौतियों का प्रभावी समाधान किया जाता है, तो उत्तराखण्ड अपने विकास की दिशा में बड़ी सफलता हासिल कर सकता है।

उत्तराखण्ड का बजट राज्य के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए एक मिश्रित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। हालांकि कर्ज और घाटे की समस्याएँ चिंता का कारण हैं, लेकिन सरकार ने कई विकास योजनाओं को प्राथमिकता दी है, जो राज्य के लिए भविष्य में लाभकारी साबित हो सकती हैं। राज्य की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए कड़े उपायों की आवश्यकता है, लेकिन जो योजनाएँ प्रस्तुत की गई हैं, वे राज्य के विकास में सहायक हो सकती हैं।

बजट सत्र के दौरान एक और महत्वपूर्ण विधेयक प्रदेश में सख्त भू-कानून के लिए उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (संशोधन) विधेयक, 2025 विधेयक विधानसभा में ध्वनिमत से पारित हुआ। इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हमारा संकल्प उत्तराखंड के संसाधनों, भूमि, को भू-माफिया से बचाए रखना है। भू-कानून में यह संशोधन भू-सुधारों में अंत नहीं अपितु एक शुरुआत है।

राज्य सरकार ने जन भावनाओं के अनुरूप भू-सुधारों की नींव रखी है। आगे भी अनवरत रूप से यह कार्य किया जाएगा। नए कानून के अनुसार आवासीय उपयोग के लिए 250 वर्गमीटर भूमि खरीदने के लिए शपथ पत्र देना होगा। बाहरी व्यक्ति हरिद्वार व ऊधम सिंह नगर को छोड़कर शेष 11 जिलों में कृषि व बागवानी के लिए भूमि नहीं खरीद सकेंगे।

उद्योग, होटल, चिकित्सा समेत विभिन्न प्रयोजन के लिए भी भूमि खरीद खरीद सकेंगे, इसके लिए संबंधित विभागों से भूमि अनिवार्यता प्रमाणपत्र लेना होगा। भूमि खरीद की अनुमति जिलाधिकारी के स्थान पर शासन देगा। नेता प्रतिपक्ष यशपाल और विधायक काजी निजामुद्दीन ने विधेयक प्रवर समिति को सौंपने की मांग की। चर्चा में भाग लेते हुए मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि सरकार कई नए महत्वपूर्ण मामलों पर ऐतिहासिक निर्णय ले रही है। उन्होंने कहा कि जिन उद्देश्यों से कई व्यक्तियों ने जमीन खरीदी, उसका दुरुपयोग हुआ। ये चिंता हमेशा मन में रही।

उत्तराखंड में पर्वतीय के साथ मैदानी इलाके भी हैं। जिनकी भौगोलिक परिस्थिति एवं चुनौतियां अलग-अलग है। स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्य के लिए औद्योगिक पैकेज दिया, तब से राज्य सरकार बड़ी संख्या में औद्योगीकरण की ओर जा रही है। ऐसे में राज्य में आने वाले असल निवेशकों को कोई दिक्कत न हो, निवेश भी न रुके। उसके लिए इस नए कानून में सभी को समाहित किया गया है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सदन में कहा कि कुछ वर्षों में प्रदेश में विभिन्न उपक्रम के माध्यम से स्थानीय व्यक्तियों को रोजगार देने के नाम पर जमीनें खरीदी जा रही थीं। भू-प्रबंधन एवं भू-सुधार कानून बनने के बाद इस पर पूर्ण रूप से लगाम लगेगी। इससे असली निवेशकों और भूमाफिया के बीच का अंतर भी साफ होगा। राज्य सरकार ने बीते वर्षों में बड़े पैमाने पर वन भूमि और सरकारी भूमि से अवैध अतिक्रमण हटाया गया है।

उन्होने 3461.74 एकड़ वन भूमि से कब्जा हटाने का दावा किया। उसे अब 11 जनपदों में समाप्त कर केवल हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर में राज्य सरकार के स्तर से निर्णय लिए जाने का प्रविधान किया गया है। किसी भी व्यक्ति के पक्ष में स्वीकृत सीमा में 12.5 एकड़ से अधिक भूमि अंतरण को 11 जनपदों में समाप्त कर केवल जनपद हरिद्वार एवं उधम सिंह नगर में राज्य सरकार के स्तर पर निर्णय लिया जाएगा।

अब प्रदेश में आवासीय परियोजन के लिए 250 वर्ग मीटर भूमि क्रय हेतु शपथ पत्र अनिवार्य कर दिया गया है। शपथ पत्र गलत पाए जाने पर भूमि राज्य सरकार में निहित की जाएगी। सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों के अंतर्गत थ्रस्ट सेक्टर एवं अधिसूचित खसरा नंबर भूमि क्रय की अनुमति जो कलेक्टर स्तर से दी जाती थी, उसे समाप्त कर, अब राज्य सरकार के स्तर से दी जाएगी।

नए भू-कानून में कई बड़े बदलाव किए गए हैं। सरकार ने गैरसैंण में भी हितधारकों, स्टेकहोल्डर से विचार लिए थे। सभी जिलों के जिलाधिकारियों एवं तहसील स्तर पर भी अपने जिलों व तहसील स्तर पर सुझाव लिए गए। सभी के सुझाव के अनुरोध से ये कानून बनाया गया है। उत्तराखंड राज्य का मूल स्वरूप बना रहे, यहां का मूल अस्तित्व बचा रहे। इसके लिए इस भू सुधार किए गए हैं।

मुख्यमंत्री के मुताबिक प्रदेश में औद्योगिक, पर्यटन, शैक्षणिक, स्वास्थ्य तथा कृषि एवं औद्यानिक प्रयोजन आदि के लिए अब राज्य सरकार एवं कलेक्टर के स्तर से कुल 1883 भूमि क्रय की अनुमति प्रदान की गई। इनमें से 599 भू-उपयोग उल्लंघन के प्रकरण रहे। 572 प्रकरणों में न्यायालय में वाद दायर किए गए। 16 प्रकरणों में वाद का निस्तारण करते हुए 9.4760 हेक्टेयर भूमि राज्य सरकार में निहित की गई। शेष प्रकरणों में कार्यवाही की जा रही है।

सत्र के दौरान सबसे बड़ा तूफान तब मचा जब विधानसभा पटल पर रखी गई कैग की रिपोर्ट पर गौर किया गया, जिसमें वन भूमि हस्तांतरण से लेकर क्षतिपूरक वनीकरण के कार्यों में बड़े स्तर पर अनदेखी देखने को मिली है। इस रिपोर्ट में कई विभागों में गड़बड़ियों और घोटालों का खुलासा किया गया।

रिपोर्ट में यह सामने आया कि कई सरकारी योजनाओं में धन का दुरुपयोग किया गया था और कुछ योजनाएं पूरी तरह से विफल रही थीं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कई अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारी निभाने में कोताही बरती, और कुछ ने तो नियमों का उल्लंघन भी किया। कैग रिपोट में वन विभाग, यूपीसीएल, कर्मकार कल्याण बोर्ड आदि में गंभीर अनियमित्ता सामने आई हैं।

कैग ने प्रतिकारक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैंपा) के तहत वर्ष 2014 से 2022 तक वन भूमि से जुड़े विकास कार्यों का परीक्षण किया। रिपोर्ट में 52 ऐसे प्रकरणों का जिक्र किया गया है, जिसमें मानकों को पूरा किए बिना ही निर्माण कार्य शुरू करा दिए गए। इन मामलों में सिर्फ वन भूमि हस्तांतरण की सिर्फ सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान की गई थी।

सक्षम अधिकारी की ओर से कार्य शुरू करने की अनुमति न मिलने के बाद भी संबंधित एजेंसियों ने वन भूमि का कटान शुरू कर दिया। गंभीर यह कि वन भूमि के अनधिकृत उपयोग का अधिकारियों ने कोई संज्ञान नहीं लिया और इन्हें वन अपराध के रूप में भी दर्ज नहीं किया। इसी तरह एक मामले में प्रभागीय वनाधिकारी ने अपने अधिकार से बाहर जाकर वन हस्तांतरण की अंतिम स्वीकृति प्रदान की। यह मामला टौंस (पुरोला) वन प्रभाग से जुड़ा है। यहां 1.03 हेक्टेयर वन भूमि को अनाधिकृत रूप से हस्तांतरित कर दी गई।

भूमि को सितंबर 2022 में उत्तरकाशी में हुडोली-विंगडेरा-मल्ला मोटर मार्ग के लिए हस्तांतरित किया गया था। असल में इसकी स्वीकृति केंद्र सरकार को देनी थी। निर्माण एजेंसियों के प्रति वन विभाग का यह प्रेम वन्यजीव शमन योजना में भी समाने आया। जिसमें प्रभागीय वनाधिकारी नरेंद्रनगर ने 22.51 करोड़ रुपए की राशि की मांग उपयोगकर्ता एजेंसी से तब मांगी, जब अंतिम स्वीकृति प्राप्त हो गई।

नियमों के अनुसार इसकी मांग सैद्धांतिक स्वीकृति के बाद और काम शुरू करने से पहले कि जानी थी। कुछ यही स्थिति प्रभागीय वनाधिकारी हरिद्वार कार्यालय में भी सामने आई। यहां 2.08 करोड़ रुपए अंतिम स्वीकृति के बाद मांगे गए। इस रहमदिली का असर यह हुआ कि परीक्षण के दौरान तक भी दोनों मामलों में रकम को जमा नहीं कराया गया था।

विधानसभा पटल पर रखी गई कैग की रिपोर्ट में क्षतिपूरक वनीकरण की स्याह हकीकत भी उजागर हुई। कैग ने मार्च 2021 में वन विभाग को सौंपी गई वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) की रिपोर्ट का भी अवलोकन किया। रिपोर्ट के अनुसार वृक्षारोपण के क्रम में पौधों की कुल जीविवितता 60 से 65 प्रतिशत होनी चाहिए। वन विभाग के मामले में पाया गया कि वर्ष 2017 से 2020 के बीच जो क्षतिपूरक वनीकरण किया गया है, उसमें से सिर्फ 33.51 प्रतिशत पौधे बच पाए हैं। यह वनीकरण 21.28 हेक्टेयर भूमि पर 22.08 लाख से किया गया था।

परीक्षण के दौरान कैग टीम को वन विभाग के कार्मिकों ने बताया कि बड़े क्षेत्र में चीड़ के वृक्षों की उपस्थिति थी। वनीकरण के लिए आवंटित भूमि तीव्र ढाल वाली थी और मिट्टी की गुणवत्ता भी वहां निम्न पाई गई। पिथौरागढ़, गौचर और गणकोट में 9.65 लाख रुपए से 13 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण किया गया, रुद्रप्रयाग, रामपुर में 8.60 लाख रुपए से 5.60 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण हुआ।

नैनीताल, ओडवास्केट में 3.83 लाख रुपए से 2.68 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण किया गया। नैनीताल में वर्ष 2019 से 2021 के बीच 78.8 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण के लिए मृदा गुणवत्ता बढ़ाने संबंधी कार्य अधूरे छोड़ दिए गए। इसके अलावा अल्मोड़ा में में कोसी पुनर्जीवन योजना में 185 हेक्टेयर भूमि पर मानकों के विपरीत जाकर मृदा कार्य और वृक्षारोपण साथ में कर दिए गए। कैग ने संयुक्त भौतिक निरीक्षण में पाया कि पांच वन प्रभागों में अधिकारियों ने 43.95 हेक्टेयर वनीकरण दिखाया। धरातल पर यह वनीकरण सिर्फ 23.82 हेक्टेयर भूमि पर ही पाया गया। इस तरह 20.13 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण सिर्फ कागजों में दिखा दिया गया।

संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के एक बयान ने सदन से लेकर सड़क तक बवाल मचाया हुआ है। अग्रवाल का यह बयान विधानसभा में ही नही प्रदेश भर में गंभीर विवाद का कारण बना हुआ है। विपक्षी दलों ने इसे व्यक्तिगत हमला मानते हुए इसका विरोध किया। इसके बाद, विपक्ष ने एक दिन के विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया और राज्यभर में सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।

अग्रवाल के बयान के बाद राज्यभर में विरोध की लहर दौड़ गई। देहरादून, नैनीताल, हल्द्वानी, हरिद्वार सहित राज्य के अन्य प्रमुख शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। कांग्रेस, उत्तराखण्ड क्रांति दल और अन्य विपक्षी दलों ने राज्य सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने न केवल राज्य के वित्तीय प्रबंधन, बल्कि घोटालों के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया।

देहरादून में हजारों प्रदर्शनकारियों ने एक विरोध मार्च निकाला, जिसमें काले झंडे लहराए गए और राज्य सरकार मुर्दाबाद के नारे लगाए गए। विपक्ष का आरोप था कि सरकार विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए पुलिस का इस्तेमाल कर रही है, जबकि सरकार ने इसे केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने की कार्रवाई बताया। इस विरोध ने राज्य की राजनीतिक हवा को और तेज कर दिया और विपक्षी दलों को यह मौका दिया कि वे सरकार के खिलाफ जनहित में अपनी आवाज उठाएं

देहरादून। विधानसभा बजट सत्र के दौरान संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने अपने बयान पर खेद प्रकट कर दिया है, मगर इसके बाद भी यह मामला सोशल मीडिया और सड़कों पर सुर्खियों में बना हुआ है। वही, भाजपा में भी अंदर खाने संसदीय कार्यमंत्री के बयान को लेकर एक मतभेत दिखाई दे रहें हैं। विपक्ष के हंगामें के दौरान सदन में मौजूद मंत्रियों और भाजपा विधायकों का खामोश रहना और अब भाजपा के वरिष्ठ विधायक बिशन सिंह चुफाल का यह कहना कि ‘मंत्री प्रेमचंद की बयानबाजी से पहाड़ी मूल के लोगों की भावनाएं आहत हुई है’।

उन्हें लगातार क्षेत्र के लोगों की और से फोन किया जा रहा है, मामले की गंभीरता को बयां कर रहा है। बिशन सिंह ने कहा कि प्रेमचंद अग्रवाल ने सदन में जो कहा वह गलत था, ऐसे में अपनी बात रखते समय संयम बरतना चाहिए। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले पर मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल खेद प्रकट कर चुके हैं, इसलिए यह चैप्टर यहीं पर खत्म हो जाना चाहिए।

संसदीय कार्य मंत्री ने अपना वक्तव्य सदन के अंदर रखा था, मगर इसकी धमक पहाड़ के दूरस्थ क्षेत्रों तक सुनाई दे रही है, भाजपा भी भली भांति जानती है कि यह मामला उसके लिए राजनीतिक रूप से बड़ा नुकसान कर सकता है। इसलिए पार्टी हर स्तर से सफाई दिलाने की कोशिश में लगी हुई है, मगर यह प्रकरण सोशल मीडिया में छाया हुआ है। सोशल मीडिया पर मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के खिलाफ जिस तरह जनता की और से भड़ास निकाली जा रही है, उससे यह बात सामने आ रही है कि यह मामला फिलहाल थमता नहीं दिख रहा है।

वहीं, अग्रवाल के बयान का विरोध करने वाले कांग्रेस के विधायक लखपत सिंह बुटोला भी सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं। विधायक लखपत सिंह बुटोला के पक्ष में लोग खुलकर लिख रहे हैं और उनकी हिम्मत की दाद दी जा रही है। इन सभी स्थितियों के बीच कांग्रेस के विधायक ने उन विधायकों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं जिन्होंने विधानसभा में रहते हुए भी आपत्तिजनक टिप्पणी का प्रतिकार नहीं किया।

उत्तराखण्ड विधानसभा का बजट सत्र 2025 राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। जहां एक ओर राज्य का बजट पास हुआ और भू-कानून बिल को स्वीकृति मिली, वहीं दूसरी ओर घोटालों की खबरों ने सियासी गलियारों में हलचल मचाई। संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का बयान और विपक्ष का उग्र विरोध, यह दर्शाता है कि राज्य की राजनीति में असहमति और बवाल अब सड़क तक फैल चुके हैं।

संपूर्ण सत्र ने यह स्पष्ट कर दिया कि उत्तराखण्ड की राजनीति में आगामी समय में कई उथल-पुथल हो सकते है। घोटालों और विवादों के बावजूद, राज्य सरकार ने अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाने का प्रयास किया, जबकि विपक्ष ने लगातार उसे घेरने का काम किया। यह सत्र अब एक सवाल छोड़ गया है, क्या यह बवाल राज्य के विकास में कोई महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा, या फिर यह सिर्फ एक राजनीतिक शतरंज की चाल बन कर रह जाएगा?