यूसीसी के खिलाफ जमीअत व अन्य पहुंचे हाईकोर्ट

Jamiat and others reached High Court against UCC

नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को राज्य सरकार की और से लागू किये गए यूसीसी-2025 को चुनौती देने वाली कई जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायधीश नरेंद्र व न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने राज्य सरकार से याचिकाओं में लगाये गए आरोपों पर 6 सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने को कहा। दूसरी ओर अब मामले की अगली सुनवाई 6 सप्ताह बाद की तिथि नियत की गयी है।

जानकारी के मुताबिक जमीयत उलमा-ए-हिंद की और से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने याचिका दायर की है। उन्होने कहा कि समान नागरिक संहिता संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के विरुद्ध ओर देश की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक है।

वहीं, नैनीताल जिले के भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी ने भी यूसीसी के विभिन्न प्रावधानों को जनहित याचिका के रूप में चुनौती दी है जिसमें मुख्यतः लिव इन रिलेशनशिप के प्रावधानों और मुस्लिम व पारसी आदि के वैवाहिक पद्धति की यूसीसी में अनदेखी किये जाने सहित कुछ अन्य प्रावधानों को भी चुनौती दी गई है। इसके अलावा देहरादून निवासी अलमासुद्दीन सिद्दीकी ने रिट याचिका दायर कर यूसीसी 2025 के कई प्रावधानों को चुनौती दी है जिसमें अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों की अनदेखी किये जाने का उल्लेख किया गया है।

बता दें कि नेगी की जनहित याचिका में लिव इन रिलेशनशिप को असंवैधानिक ठहराया है। याचिका में कहा गया कि जहां नॉर्मल शादी के लिए लडके की उम्र 21 व लडकी की 18 वर्ष होनी आवश्यक है वहीं लिव इन रिलेशनशिप में दोनों की उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गई है, साथ में उनसे होने वाले बच्चे कानूनी बच्चे कहे जाएंगे या वे वैध माने जाएंगे।

दूसरा यह है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी लिव इन रिलेशनशिप से छुटकारा पाना चाहता है तो वह एक साधारण से प्रार्थना पत्र रजिस्ट्रार को देकर करीब 15 दिन के भीतर अपने पार्टनर को छोड़ सकता है जबकि साधारण विवाह में तलाक लेने के लिए पूरी न्यायिक प्रक्रिया अपनानी पड़ती है और दशकों के बाद डिवोर्स होता है वह भी पूरा भरण पोषण देकर।

कुल मिलाकर देखा जाए तो राज्य के नागरिकों को जो अधिकार संविधान द्वारा प्राप्त हैं, राज्य सरकार ने उसमें हस्तक्षेप करके उनका हनन किया है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि भविष्य में इसके परिणाम गम्भीर हो सकते हैं, सभी लोग शादी न करके लिव इन रिलेशनशिप में ही रहना पसंद करें क्योंकि जब तक पार्टनर के साथ सम्बंध अच्छे हो तब तक रहे नहीं बनने पर छोड़ दें।

दूसरे के साथ चले जायँ, वर्ष 2010 के बाद इसका रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है न करने पर तीन माह की सजा या 10 हजार का जुर्माना देंना होगा। कुल मिलाकर देखा जाय तो लिव इन रिलेशनशिप एक तरह की वैध शादी ही है। कानूनी प्रक्रिया अपनाने में अंतर है।

वहीं दूसरी याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने यूसीसी बिल पास करते वक्त इस्लामिक रीति रिवाजों व कुरान तथा उसके अन्य प्रावधानों की अनदेखी की है। जैसे कुरान व उसके आयातों के अनुसार पति की मौत के बाद पत्नी उसकी आत्मा की शांति के लिए 40 दिन तक प्रार्थना करती है यूसीसी उसको प्रतिबंधित करता है।

दूसरा शरीयत के अनुसार संगे सम्बंधियों को छोडक़र इस्लाम मे अन्य से निकाह करने का प्रावधान है। यूसीसी में उसकी अनुमति नहीं है। तीसरा शरीयत के अनुसार सम्पति के मामले में पिता अपनी सम्पति का सभी बेटों को बाटकर उसका एक हिस्सा अपने पास रखकर जब चाहे दान दे सकता है। यूसीसी उसकी भी अनुमति नहीं देता इसलिए इसमें संशोधन किया जाए।