मसूरी से कश्मीरी शॉल विक्रेताओं का पलायन

Kashmiri shawl sellers flee Mussoorie

देहरादून/मसूरी। बीते चार दशकों से विश्वविख्यात कश्मीरी शॉल, कढ़ाईदार परिधान और ड्राई फ्रूट का व्यवसाय कर रहे लगभग 20 कश्मीरी व्यापारियों को उत्तराखंड में हिंदूवादी संगठनों के उग्र विरोध प्रदर्शन के कारण मसूरी से पलायन कर जम्मू-कश्मीर लौटने के लिए विवश होना पड़ा है।

पहलगाम नरसंहार के बाद देश भर में बदले हालातों की झलक मसूरी जैसे प्रायः शांत रहने वाले हिल स्टेशन में भी देखने को मिली है। पर्वतों की रानी कही जाने वाली मसूरी की शांत घाटियाँ भी अब नफरत के साये से अछूती नहीं रहीं। हर वर्ष सीजनल कारोबार के रूप में जम्मू के कुपवाड़ा जिले से आने वाले ये व्यापारी अपने पुश्तैनी व्यवसायः कश्मीरी शॉल, कढ़ाईदार सूट और ड्राई फ्रूट की बिक्री के लिए मसूरी का रुख करते थे। इस बार स्थिति इतनी भयावह हो गई कि लाखों रुपये का सामान मसूरी के गोदामों में बंद कर, वे केवल जान बचाकर जम्मू वापस लौटे हैं।

कुपवाड़ा निवासी मोहम्मद इकबाल ने अपनी व्यथा साझा करते हुए कहा, ‘हमारी क्या खता है? क्या सिर्फ कश्मीरी होना ही हमारा अपराध है? प्रधानमंत्री कहते हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है, तो फिर हमें क्यों सताया जा रहा है? हमारी मां-बहनों की इज्जत से क्यों खिलवाड़ हो रहा है?

इकबाल ने बताया कि पहलगाम हमले के बाद हालात की गंभीरता को देखते हुए वे मसूरी की किताबघर पुलिस चौकी पर मदद मांगने पहुंचे, मगर पुलिस ने उन्हें यह कहकर लौटा दिया कि वे उनकी सुरक्षा नहीं कर सकते। ‘हमने सुबह तक की मोहलत मांगी, लेकिन हमें रुकने नहीं दिया गया’।

बीस व्यापारियों के तीन समूह, एक 12 लोगों का, दूसरा पांच का, और दो अलग-अलग, किसी तरह रात गुजारकर अगली सुबह देहरादून के आईएसबीटी के लिए निकल पड़े। मोहम्मद इकबाल, जिनके पिता पिछले 30 वर्षों से भारतीय सेना के साथ दैनिक वेतनभोगी के रूप में कार्यरत हैं, अपनी बात बताते हुए भावुक हो उठे। ‘हमें गर्व है कि हम भारत में रहते हैं, पर हमारे ही लोग हमें मार रहे हैं, यह कैसी इंसानियत है? इकबाल ने क्षुब्ध होकर कहा, ‘यदि पहलगाम नरसंहार के अपराधी मेरे सामने आ जाएं, तो मैं उन्हें छोड़ूंगा नहीं’।

‘हम पिछले 19 वर्षों से गर्मियों में मसूरी और सर्दियों में देहरादून आकर शांतिपूर्वक अपना व्यवसाय करते आ रहे हैं। लेकिन इस बार दो साथियों को न केवल पीटा गया, बल्कि मारपीट का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया। जब हमारे परिवार वालों ने वह वीडियो देखा तो उन्होंने हमें तुरंत लौटने को कहा। अब हमसे हमारी रोज़ी-रोटी भी छिन गई है।

कुपवाड़ा के मोहम्मद शफी, जो 1988 से मसूरी में यह पुश्तैनी व्यवसाय कर रहे हैं, ने बताया ‘हम गरीब व्यापारी हैं, दुकान खरीदने की सामर्थ्य नहीं है, इसलिए हर साल सड़क किनारे फड़ लगाकर व्यापार करते हैं। इस बार वापसी के लिए किराया भी नहीं बचा था।साथियों से उधार लेकर किसी तरह लौट सका। मेरे दो बेटे और एक बेटी पढ़ाई कर रहे हैं, अब उनकी फीस कैसे दूंगा?

जम्मू-कश्मीर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय संयोजक नासिर खुएहामी ने कहा, ‘जहां न्याय होना था, वहीं अन्याय हुआ। इस प्रकार की घटनाएं हमे किस दिशा में ले जाएंगी, यह चिंताजनक है। उन्होंने बताया कि मारपीट करने वाले तत्वों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराने के बावजूद उन्हें छोड़ दिया गया। पुलिस सूत्रों के अनुसार, अभियुक्तों ने माफी मांग ली थी, इसलिए उन्हें जाने दिया गया। परंतु क्या माफी से अपराध की गंभीरता कम हो जाती है?।