- नैनीताल हिंसा व तनाव की छाया में दम तोड़ रहा पर्यटन सीजन
- सीजफायर की खबर से शांति लौटी, पर्यटक लोटना बाकी
देहरादून। जब उत्तराखंड के पहाड़ गर्मियों में खिलते हैं, तो देशभर से लोग इन वादियों में राहत और सुकून की तलाश में चले आते हैं। नैनीताल की झीलों में कश्ती खींचते बच्चे, मसूरी के केम्पटी फॉल में खिलखिलाती आवाज़ें और चारधाम यात्रा पर उमड़ती आस्था, सब हर साल इस मौसम में आम दृश्य होते थे। मगर इस बार तस्वीर अलग है। बहुत अलग।
भारत-पाक सीमा पर तनाव, और नैनीताल में हुए उपद्रव ने उत्तराखंड की पर्यटन अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया। भले ही अब सीजफायर हो चुका है और हालात काबू में हैं, पर पर्यटकों का भरोसा लौटना अभी बाकी है। हवा अब भी वही है, बादल वही हैं, झीलें उतनी ही गहराई लिए हुए हैं। पर पर्यटकों की हँसी नहीं है। उत्तराखंड आपको पुकार रहा है, ‘शांति लौट आई है, अब बस आपका साथ चाहिए।
पहले डर, फिर हिंसा, अब घाटा ही घाटा

बीते कुछ हफ्तों में नैनीताल में हुए बवाल ने राज्य की छवि पर गहरी चोट की। वहीं सीमा पर जारी तनाव ने देशभर के लोगों को भ्रमित और भयभीत कर दिया। पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि सबसे बड़ा नुकसान ‘विश्वास’ को हुआ है।
नैनीताल होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह बिष्ट कहते है कि, ‘90 फीसदी बुकिंग्स तो कैंसिल हो ही चुकी हैं, जो लोग अब तक आए थे वो भी लौट रहे हैं। सीजफायर की खबर राहत ज़रूर है, मगर डर का असर गहराई से बैठ चुका है।”
मसूरीः जहां चहल-पहल थी, अब खाली गलियां हैं

मसूरी होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय अग्रवाल बताते है कि, “मई-जून का सीजन हमारे लिए सबसे अहम होता है। दिल्ली-एनसीआर से भारी भीड़ आती थी, पर अब लोग कॉल करके पूछ रहे हैं, ‘क्या वहां इंटरनेट चालू है?’ यह सवाल ही बताता है कि भरोसा नहीं रहा। यहां की दुकानों, रेस्तरां और लोकल गाइड्स के पास अब ग्राहकों की जगह खाली कुर्सियां और रुकी हुई घड़ियाँ हैं।
हर दिन करोड़ों का नुकसान, जीवन थमा हुआ है
उत्तराखंड में पर्यटन से हर साल हजारों करोड़ रुपये की आय होती है। यह कारोबार सिर्फ होटल और टैक्सी तक सीमित नहीं, इससे जुड़े हैं फोटोग्राफर, गाइड, स्ट्रीट वेंडर, दुकानदार और हजारों दिहाड़ी मज़दूर। देहरादून के होटल व्यवसायी प्रणव गिल्होत्रा का कहना है, “पैसे लौटाने पड़ रहे हैं, लेकिन हम पर्यटकों से रिश्ता खराब नहीं करना चाहते। हमने कई सालों में ये भरोसा कमाया है, अब सब कुछ एक झटके में डगमगा गया।”
चारधाम यात्रा की रफ्तार भी थमी
उत्तराखंड की धार्मिक आस्था की धड़कन माने जाने वाली चारधाम यात्रा भी इस धीमी गती से चल रही है। चारधाम होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश मेहता का मानना है कि, “सीजफायर की खबर के बाद उम्मीद जगी है, मगर जो डर बैठ गया है, वो इतनी जल्दी नहीं जाएगा। कई हवाई अड्डों की बंदी से बुकिंग्स पर भी असर पड़ा है।”
सरकार की कोशिशें तेज, भरोसा लौटाने की जंग जारी
“उत्तराखंड सुरक्षित है”: यह संदेश सोशल मीडिया, वेबसाइट और रेडियो के ज़रिए फैला रहा है। प्रदेश के सीएम पुष्कर सिंह धामी से लेकर पयर्टन मंत्री सतपाल महाराज तक सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रखे जाने को लेकर लगातार बैठके कर रहे है। सड़कों, होटल्स और टूरिस्ट स्पॉट्स की निगरानी तेज की गई है। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने हाल ही में कहा, “पर्यटक बेझिझक उत्तराखंड आएं। हालात सामान्य हैं, और हम पूरी सुरक्षा की गारंटी देते हैं।”
समय की चुनौतीः सीजन जा रहा है, क्या उम्मीदें लौटेंगी?
पर्यटन व्यवसायियों की सबसे बड़ी चिंता हैः वक़्त की रफ्तार। उत्तराखंड होटल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष व मनु कोचर, कहते है कि, “15 मई से 10 जुलाई तक का समय सबसे ज्यादा आमदनी वाला होता है। अगर 3-4 महीने हालात ऐसे ही रहे, तो इस साल का पूरा सीजन बर्बाद मानिए। मगर हमारी उम्मीदें अब भी बाकी हैं।”